Back to resources

एक दूसरे के साथ बातें करने से स्वस्थ रहते हैं पेड़

Climate & Biodiversity | Oct 5, 2019

परवाह… इस बार त्योहारों में परिवार के साथ उत्सव मनाते हम कुछ वक्त पेड़ों के रोचक दुनिया को भी जानें।

अब ज्यों ही त्योहारों का मौसम आ रहा है, हम इस साल भरपूर मानसून के लिए खुश हो सकते हैं। दुर्भाग्य से कई इलाके ऐसे भी हैं जहां बाढ़ के गंभीर हालात बने। इस देश में हमें अब बदलते वातावरण के साथ अतिवृष्टि और बाढ़ से निपटना सीखना होगा। पेड़ और जंगल इसके बचाव की रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये सूखे महीनों के लिए पानी को इकट्ठा कर रखते हैं और मिट्‌टी का कटाव बचाते हैं। इन दिनों पेड़ और पर्यावरण से जुड़े मुद्दे हर वक्त खबरों में रहते हैं। शहरी भारत की नई पीढ़ी को यह एहसास होने लगा है कि पेड़ उनके स्वास्थ्य और भविष्य के लिए कितने अहम हैं। शायद एक नई ‘चिपको पीढ़ी’ तैयार हो रही है। हाल ही में मुंबई के आरे मिल्क कॉलोनी में पेड़ काटने के विरोध में युवा सड़कों पर उतरे। वह पेड़ जो शायद उस शहर में साफ हवा की आखिरी उम्मीद में से एक हैं। उस शहर की, जिसने पिछले 20 सालों की सबसे खराब एयर क्वालिटी 2018 में झेली है। यह विरोध सालों से चल रहा है। मुझे भरोसा है कि ये लोग जो खुद मेट्रो से चलते हैं, शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर की अहमियत समझते हैं, जिसके लिए ये पेड़ काटे जाने हैं। फिर भी, दुनियाभर के युवाओं की तरह ये युवा भी बड़ों से पर्यावरण और विकास के बीच सामंजस्य बैठाने की गुहार लगा रहे हैं। हम जानते हैं कि रियल एस्टेट और मेट्रो के लिए शेड बनाने की कीमत क्या होती है। लेकिन हमारे पास ऐसा कोई तरीका नहीं जिससे एक तंदरुस्त जंगल का मूल्य पता कर सकें। जंगल या पेड़ों को मिनटों में काटा या जलाया जा सकता है, लेकिन उन्हें उगने में कई दशक लग जाते हैं। और लोगों को इसकी असल कीमत वायु प्रदूषण, बढ़ते तापमान जैसी दिक्कतों का सामना कर चुकानी होती है। खासकर मुंबई जैसे तटवर्ती शहरों में पेड़, वेटलैंड्स और मैंग्रोव बाढ़ से जुड़े खतरों से बचाते हैं। इसलिए यह अच्छा साइंस और कॉमनसेंस है कि हम ज्यादा से ज्यादा पेड़ों को बचाएं। क्योंकि हर पेड़ न बचाया जा सकता है न ही बचाया जाना चाहिए।

मुझे हाल में अपने बगीचे में कई पौधे लगाने का मौका मिला। अपने हाथों से पौधा रोपने से जो संतुष्टि मिलती है उसे व्यक्त करना मुश्किल है। और उसकी देखभाल करना तब तक, जब तक वह मजबूत पेड़ न बन जाए ऐसी खुशी देता है जिसे अनुभव ही किया जा सकता है। वास्तव में पेड़ थैरेपी भी दे सकते हैं। जापानी लोग “जंगल स्नान’ करते हैं, जिसे वे शिनरिन-योकू कहते हैं। रिसर्च के मुताबिक इस स्नान से रोग-प्रतिरोधक क्षमता मजबूत और तनाव कम होता है। उनका सुझाव है कि पांचों इद्रियों के साथ महसूस करते हुए जंगल में चलना-बैठना चाहिए। कंक्रीट के जंगलों में रहने को मजबूर दुनियाभर के लोग इसे अपना रहे हैं। पड़ोस का पार्क भी यह उद्देश्य पूरा कर सकता है। वैज्ञानिक पिछले कुुछ सालों में पेड़ों के बारे में बहुत कुछ सीख रहे हैं। नई रोचक रिसर्च से कुछ जानकारियां मिली हैं जिसे अब वुड वाइड वेब कहा जाता है। जिस तरह वर्ल्ड वाइड वेब दुनियाभर के लोगों को जानकारियां साझा करने का जरिया देता है, वैसे ही पेड़ों का अपना जटिल कम्युनिकेशन सिस्टम है, वह भी 4.5 करोड़ साल पुराना। जाहिर तौर पर हम इंसानों के नर्वस सिस्टम की तरह पेड़ों का भी ऐसा कुछ होता है जिसकी मदद से वे एक दूसरे से बात कर सकते हैं, सीख सकते हैं और याद भी रख सकते हैं। पेड़ बैक्टीरिया और फंगस के सहजीवी सिस्टम का इस्तेमाल कर एक दूसरे को खाना और ज्ञान देते हैं। पेड़ों की जड़ों पर मौजूद फंगस उनसे शक्कर लेती हैं और बदले में नाइट्रोजन और फॉस्फोरस के रूप में पोषण देती हैं। पेड़ फंगस के माइकोरिजल नेटवर्क का इस्तेमाल दूसरे जरूरतमंद पेड़ों को खाना देने के लिए करते हैं। वह केमिकल सिग्नल के जरिए शिकारी या आक्रामक प्रजातियों से खतरे की चेतावनी भी भेजते हैं। ताकि वह पेड़ खतरनाक हार्मोन्स या केमिकल्स पैदा कर खतरे से खुद को बचा सकें। जंगल में अचानक आई विपदा जैसे कि वनों की कटाई के वक्त, पेड़ एक दूसरे को तनाव के संकेत भी भेज सकते हैं।

फंगस के जरिए तैयार यह कम्युनिकेशन नेटवर्क जंगल के सिस्टम को तंदरुस्त रखता है। कुछ एक फंगस और पेड़ों के बीच खास रिश्ता होता है। इसलिए ज्यादातर संवाद एक जैसी प्रजाति के बीच होते हैं। इसके बावजूद वह दूसरी प्रजाति के पेड़ों से भी बात कर सकते हैं। रिसर्च में पता चला है कि अलग-अलग प्रजातियों के बीच संवाद से पेड़ों को स्वस्थ और लचीला रहने में मदद मिलती है। शहरों में पेड़ ज्यादातर अकेले रहते हैं। कंक्रीट ढांचों के बीच वह दूसरे पेड़ों से संवाद नहीं कर पाते और उनके फंगल नेटवर्क को भी नुकसान पहुंचता है। जिससे उनकी उम्र और जीवन शक्ति कम हो जाती है। पेड़ उगाने के अभियानों में शामिल शहरी लोगों के लिए यह समझना और याद रखना बेहद जरूरी है। वह एक प्रजाति के पेड़ों को समूह में लगाएं और उनके बीच की मिट्‌टी को अतिक्रमण से मुक्त रखें।

हमारे भाग्य को पेड़ों से अलग नहीं किया जा सकता। उन्हें जीने के लिए जरूरत है स्वस्थ इकोसिस्टम की और हमें जिंदा रहने के लिए दरकार है स्वस्थ पेड़ों की। वह ऑक्सीजन देते हैं, कॉर्बन सोख लेते हैं, मिट्‌टी का कटाव रोक, पानी सहेजते हैं। इन सब जगजाहिर जानकारियों के अलावा हमें अब ये भी पता चला है कि पेड़ों को फंगल नेटवर्क की जरूरत होती है इसलिए मनुष्य को भी है। इसलिए हमें पेड़ों की जड़ों पर रहनेवाले विविध जीवों को बचाना होगा। यह जानकारी हमारे लिए कवच सी है। क्योंकि नई पीढ़ी ने बीड़ा उठाया है खुद को सेहतबख्श कर प्राकृतिक दुनिया को सेहतबख्श करने के चुनौतीपूर्ण काम का। यह शुरुआत है भारत में लंबे त्योहारों वाले मौसम की। कोई भी त्योहार पेड़ों से मिले उत्पादों के बिना अधूरा है। आम के पत्ते, नारियल, फूल, फल या सोने की पत्ती के नाम से महाराष्ट्र में दशहरे पर बांटी जानेवाली पत्तियां। क्यों न इस साल देवी देवताओं को नमन करते हुए या फिर परिवार के साथ उत्सव मनाते हम कुछ वक्त माइकोरिजल नेटवर्क के बारे में सोचें। उस जीव के बारे में जो पेड़ों की जड़ों पर मौजूद है। आखिरकार, त्योहार और दस्तूर बने ही हैं हमारी पवित्र भावना को तरोताजा करने और धरती पर जीवन के इस जटिल जाल से अपने गहरे संबंधों को दोबारा जोड़ने के लिए।

Newspaper Image

Gujarati

Marathi

More like this

Climate & Biodiversity

Three Patrol Vehicles Donated To Nagarahole For Conservation

Rohini Nilekani handed over three Tata Yodha patrol vehicles to Nagarahole Tiger Reserve Director Mahesh Kumar.    
Mar 7, 2022 |

Climate & Biodiversity  |  Strategic Philanthropy

A Conversation With Philanthropist Rohini Nilekani

This is an edited version of Rohini Nilekani’s conversation with NatureinFocus Founder Rohit Varma and Kalyan Varma about her thoughts on the importance of conservation, how to reach younger generations, and her love for the environment and a certain black panther in Kabini. I was born in Mumbai in ‘59 and my childhood was spent […]
Jan 9, 2021 |

Climate & Biodiversity

सवाल, पक्षियों की आखिर अहमियत क्या है?

चेतावनी… हाल ही में जारी स्टेट ऑफ इंडिया बर्ड्स 2020 रिपोर्ट का डेटा बेहद चौंकाने वाला है बसंत का मौसम है। मौसम पंछियों वाला। देश में भले आप कहीं भी रहते हों, घने जंगल से लेकर बियाबान रेगिस्तान या फिर गली-मोहल्लों वाले किसी शहर में। संभावना है कि सुबह आपकी नींद पक्षियों के चहचहाने से […]
Feb 29, 2020 | Article

Climate & Biodiversity

पक्षियों और मनुष्यों का आपसी संबंध

पूरी दुनिया को प्रभावित करने वाले वर्तमान कोरोना वायरस संक्रमण ने हम सभी को इस बात का एहसास करा दिया है कि समय-समय पर जानवरों की बीमारियां मनुष्यों में प्रवेश कर भयंकर महामारी का रूप ले सकती हैं। ऐसी स्थिति में गिद्धों की बहुत जरूरी भूमिका है। वे मृत जानवरों के अवशेषों का जल्द निपटारा […]
Nov 3, 2020 |